अष्टावक्र गीता-दोहे -10
*अष्टावक्र गीता*-10
अद्वैती नर हो जिसे,मोक्ष-अर्थ का ज्ञान।
काम-वासना लिप्त यदि,विस्मय यही महान।।
काम-वासना ज्ञान-रिपु,यदि रह अंतिम काल।
है अशक्त,आश्चर्य यह,जाय काल के गाल।।
विरत लोक-परलोक से,ज्ञानी नित्य-अनित्य।
यदि डरता है मोक्ष से,है यह अचरज कृत्य।।
सुबुध आत्म-दर्शी पुरुष,रहता एक समान।
भोजन अथवा दुख मिले,तोष-रोष सम जान।।
कार्यशील निज देह इव,पर-तन जो नर जान।
महापुरुष वह जगत में,परे मान-अपमान ।।
©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
Gunjan Kamal
04-Apr-2024 01:56 AM
👌🏻👏🏻
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Mohammed urooj khan
24-Feb-2024 12:46 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Varsha_Upadhyay
24-Feb-2024 12:33 PM
Nice
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